इकना की रिपोर्ट के अनुसार, जकार्ता दक्षिण में पासार मिंग्गू के निवासियों को इस मध्य पूर्वी शैली की मस्जिद के बारे में जानना चाहिए। अल-फजरी जामा मस्जिद तुर्की के इस्तांबुल स्थित सुल्तान अहमद मस्जिद (जिसे नीली मस्जिद के नाम से भी जाना जाता है) की तर्ज पर डिज़ाइन की गई है। इस मस्जिद का समय-समय पर जीर्णोद्धार किया गया है और इसका उद्देश्य मुसलमानों के प्रशिक्षण और विकास का केंद्र बनना है।
अल-फजरी जामा मस्जिद एक अत्यंत अनूठी और आकर्षक वास्तुकला वाली मस्जिद है। इसे अक्सर "तुर्की की नीली मस्जिद का लघु रूप" कहा जाता है, क्योंकि यह इस्तांबुल की सुल्तान अहमद मस्जिद से काफी मिलती-जुलती है। इस मस्जिद के गुंबद और आंतरिक दीवारें अक्सर नीले रंग की हैं और इसमें तुर्की की विशेष सजावट जैसे ख़ुशनवीसी और फूलों की नक्काशी देखने को मिलती है।
इस मस्जिद की स्थापना 1947 में हुई थी और 1958 में इसे सामुदायिक सहयोग से पूरा किया गया। इसकी डिज़ाइन की विशिष्टता ही इस मस्जिद की मुख्य पहचान है। इसका वास्तुशिल्प इंडोनेशिया की अधिकांश मस्जिदों से अलग है, जो इसे एक अनोखा पर्यटन स्थल बनाता है।
इस मस्जिद का ऐतिहसिक महत्व भी बहुत अधिक है, क्योंकि इसे सामुदायिक सहयोग से बनाया गया और कई बार इसकी मरम्मत की गई। इस मस्जिद का अस्तित्व इंडोनेशिया में सहिष्णुता और सांस्कृतिक विविधता की भावना को दर्शाता है।
अल-फजरी जामा मस्जिद न केवल एक इबादत स्थल है, बल्कि एक लोकप्रिय धार्मिक पर्यटन स्थल भी है। कई आगंतुक यहाँ इसकी सुंदर वास्तुकला को देखने और इसके शांत आध्यात्मिक वातावरण का अनुभव करने आते हैं।
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